आंदोलनकारी किसान के मिशन यूपी के मायने

मिशन यूपी आंदोलनरत किसानों का अलगा पडाव है। इसकी बकायदगी से शुरुआत रविवार को मुज्जफरनगर से होगी। मौजूदा आंदोलन के 9 महीने 9 दिन मुक्कमल होने पर किसान संगठन मिशन यूपी शुरु करने जा रहे हैं। इसकी खास वजह है। वजह है यूपी असेंबली का महत्वपूर्ण इलेक्शन। बीजेपी के लिए यूपी का असेंबली इलेक्शन उतना ही महत्वपूर्ण है। जितना आंदोलनरत किसानों के लिए। यूपी असेंबली का महत्वपूर्ण चुनाव बीजेपी जीत जाती है तो उसके लिए 2024 की डगर बेहद आसान हो जाएगी। 2024 में 18वी लोकसभा के चुनाव होने हैं। बीजेपी यूपी जीत जाती है तो उसे केंद्र में सरकार बनाने में आसानी होगी। अगर बीजेपी 2022 में यूपी का चुनाव नहीं जीत पाई तो उसके एजेंडे को पलीता लग सकता है। इससे उसके विरोधी उस पर हॉवी हो जाएंगे। बीजेपी शायद ही यह चाहेगी। इसलिए बीजेपी की संयुक्त किसान मोरचा के मिशन यूपी पर खास पैनी निगाह रहेगी। उम्मीद तो यह है कि यूपी असेंबली चुनाव के मद्देनजर केंद्र सरकार किसानों से फिर से बातचीत शुरु कर आंदोलन की समाप्ति की दिशा में बढेगी। लेकिन फिलहाल बातचीत शुरु होने के कोई संकेत नहीं मिल रहे हैं। संयुक्त किसान मोरचा से केंद्र सरकार की आखिरी बातचीत 22 जनवरी को हुई थी। उसके बाद से ऐसी सियासत हुई कि बातचीत की डगर ही नहीं बन पाई।

किसानों के खिलाफ नेरेटिव बनाया जाने लगा। आतंकवादी, खलनायक, मवाली, देश के दुश्मन तक किसानों को बताया जाने लगा। लेकिन किसानों के आंदोलन पर इसका असर नहीं हुआ। यहीं वजह है कि किसान दिल्ली के तीन बॉर्डरों पर 9 महीने 8 दिनों से जमे हुए हैं। इतना जबरदस्त नेरेटिव बनाए जाने के बावजूद किसान अगर आंदोलन पर डटे हुए हैं, तो इसे काश्तकारों की जीत के तौर पर ही देखा जा सकता है। आजाद भारत में किसानों का इतना लंबा आंदोलन नई इबारत गढ रहा है। आजाद भारत में 1986 से लेकर यूं तो कई आंदोलन हुए। मगर कोई इतना लंबा आंदोलन नहीं हुआ। जितना मौजूदा आंदोलन हो रहा है। किसानों में एकता की अलख जगाने वाले चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने यूपी से लेकर दिल्ली के वोट क्लब तक कई आंदोलन का नेतृत्व किया। शायद उसी की परिणिति मौजूदा किसान आंदोलन है। लेकिन चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के दौर से मौजूदा वक्त तक परिस्थितियां बेहद बदल गई हैं। किसानों के दर्जनों संगठन बन गए हैं। इसी वजह से कई बार आंदोलन के रास्ते में कई बाधाएं खडी हुई। मगर खुशी की बात है कि आंदोलन डगमगाया नहीं। वरना कोशिश पूरी हुई थी। खैर, मुद्दा अब यह नहीं है। मुद्दा है आगे की चुनौतियां। चुनौतियां दोनों ओर है। केद्र सरकार के सामने भी और आंदोलनरत किसानों के सामने भी। हरियाणा के करनाल में पिछले दिनों जो हुआ उससे लगता नहीं कि सरकार बातचीत की नई कोशिश कर रही है। अगर यह कोशिश होती तो हरियाणा के सीएम मनोहर लाल खट्टर की आलोचना जबरदस्त होती। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक ने जरुर दम दिखाया। मगर उनकी आवाज़ भी दब कर ही रह गई। इससे उत्साहित मनोहर लाल खट्टर ने किसानों का सिर फोडने का फरमान जारी करने वाले जूनियर आईएएस अफसर आयुष सिन्हा को पदोन्नति दे दी।

अब मुज्जफरनगर की महापंचायत में मनोहर लाल खट्टर के कामकाज और किसान आंदोलन को लेकर क्या चरचा होगा। इससे आंदोलन और केंद्र सरकार से बातचीत का अगला रुख तय होगा। रविवार की मुज्जफरनगर किसान महापंचायत की मीडिया के बडे तबके में ज्यादा चरचा नहीं है। कुछ टीवी न्यूज़ चैनलों, अखबारों में महापंचायत की तैयारियों की तस्वीर जरुर दिखाई दे रही है। पिछले दिनों हरियाणा के नूंह में हुई किसान रैली की टॉप 5 न्यूज़ चैनलों ने नेगेटिव ख़बर दिखाई थी। इससे संकेत मिलते हैं कि फिलहाल किसानों के खिलाफ बनाए जाने वाला नेरेटिव जस का तस है। फिर सरकार से आंदोलनरत किसान की बातचीत का क्या आधार बनेगा ?  इस यश प्रश्न के उत्तर का इंतजार देश को रहेगा। सुप्रीमकोर्ट ने पिछले दिनों सांप्रदायिक रिपोर्टिंग के लिए सरकार को झाड लगाई थी। मुल्क की सबसे बडी अदालत ने सरकार के पूछा था कि क्या निजि न्यूज़ चैनलों के लिए नियमन की कोई कोशिश हुई। यह तो शुक्र है कि मुल्क में बाबा साहेब भीम राव अंबेदकर का संविधान है। वैसे हमारे संविधान को बदलने की मुहिम बीजेपी के शासन में ही 1999 से 2004 के बीच चली। अगर उस वक्त संविधान बदल जाता तो शायद सुप्रीमकोर्ट निजि न्यूज़ चैनलों की हरकतों पर नाराजगी जाहिर न कर पाता। संविधान ने ही मुल्क को ज्महूरियत दी हुई है। इसी ज्महूरियत के चलते किसान आंदोलन चालने में कामयाब है। वरना सरकारें तो इस तरह के आंदोलन कभी पंसद नहीं करती। मुज्जफरनगर किसान महापंचायत से कितने सर छोटू राम, शहीदे आजम भगत सिंह के चाचा और महान स्वतंत्रता सेनानी अजित सिंह और चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसानी की पारंपरिक अलख जागने के लिए आगे आते हैं। इस पर दुनिया की निगाहें टिकी रहेंगी।

-मनोज नैय्यर

journalistmanojnayyar@gmail.com

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